Wednesday 24 April 2013

स्त्रियाँ क्योँ लगाती हैँ माँग मेँ सिन्दूर और इसकी वैज्ञानिकता क्या?

स्त्रियाँ क्योँ लगाती हैँ माँग मेँ सिन्दूर और इसकी वैज्ञानिकता क्या?

(1)भारतीय वैदिक परंपरा खासतौर पर हिंदू समाज में शादी के बाद महिलाओं को मांग में सिंदूर भरना आवश्यक हो जाता है। आधुनिक दौर में अब सिंदूर की जगह कुंकु और अन्य चीजों ने ले ली है। सवाल यह उठता है कि आखिर सिंदूर ही क्यों लगाया जाता है। दरअसल इसके पीछे एक बड़ा वैज्ञानिक कारण है। यह मामला पूरी तरह स्वास्थ्य से जुड़ा है। सिर के उस स्था
न पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है, मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है,
जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। यह अत्यंत संवेदनशील भी होती है।
यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है। सिंदूर इसलिए लगाया जाता है क्योंकि इसमें पारा नाम की धातु होती है। पारा ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि का काम करता है। महिलाओं को तनाव से दूर रखता है और मस्तिष्क हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाहके बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं।पारा एकमात्र ऐसी धातु है जो तरल रूप में रहती है। यह मष्तिष्क के लिए लाभकारी है, इस कारण सिंदूर मांग में भरा जाता है।

(2)मांग में सिंन्दूर भरना औरतों के लिए सुहागिन होने की निशानी माना जाता है। विवाह के समय वर द्वारा वधू की मांग मे सिंदूर भरने के संस्कार को सुमंगली क्रिया कहते हैं।
इसके बाद विवाहिता पति के जीवित रहने तक आजीवन अपनी मांग में सिन्दूर भरती है। हिंदू धर्म के अनुसार मांग में सिंदूर भरना सुहागिन होने का प्रतीक है। सिंदूर नारी श्रंगार का भी एक महत्तवपूर्ण अंग है। सिंदूर मंगल-सूचक भी होता है। शरीर विज्ञान में भी सिंदूर का महत्त्व बताया गया है।
सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होनेके कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पडती। साथ ही इससे स्त्री के शरीर में स्थित विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है। मांग में जहां सिंदूर भरा जाता है, वह स्थान ब्रारंध्र और अध्मि नामक मर्म के ठीक ऊपर होता है।
सिंदूर मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है। सामुद्रिक शास्त्र में अभागिनी स्त्री के दोष निवारण के लिए मांग में सिंदूर भरने की सलाह दी गई है।

Sunday 21 April 2013

रजोनिवृत्ति का संबंधों पर प्रभाव

रजोनिवृत्ति का संबंधों पर प्रभाव

रजोनिवृत्ति का संबंधों पर प्रभाव:-

मेनोपोज यानी रजोनिवृति स्त्री के जीवन में एक ऐसा टर्निंग प्वाइंट होता है जहां से उसके जीवन में निराशा, अवसाद जैसी कई बीमारियां घेर लेती हैं। रजोनिवृति की शिकार महिलाओं में हृदय संबंधी रोगों की भी संभावना रहती है। रजोनिवृति के कारण महिलाएं खुद तो परेशान रहती ही हैं पति व परिवार के अन्य रिश्ते भी इन समस्याओं से अछूते नहीं रहते।

रजोनिवृति वह समय है जब महिलाओं में मासिक धर्म होना बंद हो जाता है। यह एक सामान्य सी हार्मोनल प्रक्रिया है जो हर महिला के जीवन में आती है। इस दौरान महिलाओं के मूड में काफी बदलाव होते है वे चिड़चिड़ी व चिंताग्रस्त रहने लगती हैं जिससे उनसे जुड़े लोग भी प्रभावित होते हैं। जानिए रजोनिवृति कैसे संबंधो को प्रभावित करती है।

रजोनिवृति का संबंधो पर प्रभाव
• मासिक बंद होने के समय शरीर में कुछ परिवर्तन होते हैं, इनसे कुछ महिलाएँ परेशान व भयभीत हो जाती हैं, जिसका प्रभाव संबंधों पर पड़ता हैं।
• महिलाएं अपने पार्टनर से रूखा व्यवहार करने लगती हैं।
• महिलाओं की सेक्स में रूचि कम हो जाती हैं।
• रजोनिवृति होने से चिड़चिड़ापन आपसी रिश्तों को खासा प्रभावित करता है।
• पति-पत्नी के बीच कड़वाहट के साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों से भी नहीं बनती।
• कुछ महिलाएं रजोनिवृति के बाद डिप्रेशन में चली जाती हैं जिससे उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता और समय-समय पर उनका मूड बदलता रहता है।
• महिलाएं रजोनिवृति के बाद शारीरिक बदलावों के अलावा मानसिक रूप से भी बहुत प्रभावित होती हैं जिससे महिलाएं अपने सामान्य कामों को रूप से नहीं कर पाती।
• रजोनिवृति के बाद महिलाओं के बीमार रहने के कारण उनका साथी उनसे दूर-दूर रहने लगता है।
• माहवारी बंद होना एक स्वाभाविक घटना होती है लेकिन महिलाएं इसे स्व भाविक न लेकर एक बीमारी बना लेती हैं।
रजोनिवृति के दौरान होने वाली समस्याएं
• रजोनिवृति के दौरान महिलाओं के लक्षण, अनुभव और बीमारियां अलग-अलग होती हैं। कुछ महिलाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते, जबकि कुछ को शारीरिक और मानसिक विविध बीमारियां हो सकती हैं।
• मीनोपोज के बाद महिलाओं में हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
• चिड़चिड़ापन आना, उच्च रक्तरचाप होना, तनाव ग्रस्त होना, डिप्रेशन इत्यादि मीनोपोज के कारण ही होता है।
• योनि से अनियमित रक्तस्राव यानी महावारी का जल्दी आना या देर तक न आना।
• योनि में रूखापन
• मूत्र निष्कासन के समय जलन
• अनिंद्रा की शिकायत
• वज़न बढ़ना
• लगातर मूड बदलना, थकावाट महसूस होना
• याददाश्त कमजोर होना
• जोड़ो में दर्द रहना या हड्डियों का कमजोर होना।

Tuesday 16 April 2013

Organic Products

 __________________________________________________________________________
Cereals - Pulses - Grains - Spices - Nutrition
(100% Pure & Natural)

Rejuvenate Mind Body & Soul 
Reach us @ +91 8800953535
www. bionrg.in         info@bionrg.in

स्मरणशक्ति कैसे बढ़ायें?

स्मरणशक्ति कैसे बढ़ायें?

अच्छी और तीव्र स्मरण शक्ति के लिए हमें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ, सबल और निरोग रहना होगा। मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और सशक्त हुए बिना हम अपनी स्मृति को भी अच्छी और तीव्र नहीं बनाये रख सकते।

आप यह बात ठीक से याद रखें कि हमारी यादशक्ति हमारे ध्यान पर और मन की एकाग्रता पर निर्भर करती है। हम जिस तरफ जितना ज्यादा एकाग्रतापूर्वक ध्यान देंगे, उस तरफ हमारी विचारशक्ति उतनी ज्यादा केन्द्रित हो जायेगी। जिस कार्य में भी जितनी अधिक तीव्रता, स्थिरता और शक्ति लगायी जायेगी, उतनी गहराई और मजबूती से वह कार्य हमारे स्मृति पटल पर अंकित हो जायेगा।

स्मृति को बनाये रखना ही स्मरणशक्ति है और इसके लिए जरूरी है सुने हुए व पढ़े हुए विषयों का बार-बार मानना करना, अभ्यास करना। जो बातें हमारे ध्यान में बराबर आती रहती हैं, उनकी याद बनी रहती है और जो बातें लम्बे समय तक हमारे ध्यान में नहीं आतीं, उन्हें हम भूल जाते हैं। विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने अभ्यासक्रम (कोर्स) की किताबों को पूरे मनोयोग से एकाग्रचित्त होकर पढ़ा करें और बारंबार नियमित रूप से दोहराते भी रहें। फालतू सोच विचार करने से, चिंता करने से, ज्यादा बोलने से, फालतू बातें करने से, झूठ बोलने से या बहाने बाजी करने से तथा कार्य के कार्यों में उलझे रहने से स्मरणशक्ति नष्ट होती है।

बुद्धि कहीं बाजार में मिलने वाली चीज नही है, बल्कि अभ्यास से प्राप्त करने की और बढ़ायी जाने वाली चीज है। इसलिए आपको भरपूर अभ्यास करके बुद्धि और ज्ञान बढ़ाने में जुटे रहना होगा।

विद्या, बुद्धि और ज्ञान को जितना खर्च किया जाय उतना ही ये बढ़ते जाते हैं जबकि धन या अन्य पदार्थ खर्च करने पर घटते हैं। विद्या की प्राप्ति और बुद्धि के विकास के लिए आप जितना प्रयत्न करेंगे, अभ्यास करेंगे, उतना ही आपका ज्ञान और बौद्धिक बल बढ़ता जायगा।

सतत अभ्यास और परिश्रम करने के लिए यह भी जरूरी है कि आपका दिमाग और शरीर स्वस्थ व ताकतवर बना रहे। यदि अल्प श्रम में ही आप थक जायेंगे तो पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा समय तक मन नहीं लगेगा। इसलिए निम्न प्रयोग करें।

आवश्यक सामग्रीः शंखावली (शंखपुष्पी) का पंचांग कूट-पीसकर, छानकर, महीन, चूर्ण करके शीशी में भर लें। बादाम की 2 गिरी और तरबूज, खरबूजा, पतली ककड़ी और मोटी खीरा ककड़ी इन चारों के बीज 5-5 ग्राम, 2 पिस्ता, 1 छुहारा, 4 इलायची (छोटी), 5 ग्राम सौंफ, 1 चम्मच मक्खन और एक गिलास दूध लें।

विधिः रात में बादाम, पिस्ता, छुहारा और चारों मगज 1 कप पानी में डालकर रख दें। प्रातःकाल बादाम का छिलका हटाकर उन्हें दो बार बूँद पानी के साथ पत्थर पर घिस लें और उस लेप को कटोरी में ले लें। फिर पिस्ता, इलायची के दाने व छुहारे को बारीक काट-पीसकर उसमें मिला लें। चारों मगज भी उसमें ऐसे ही डाल लें। अब इन सबको अच्छी तरह मिलाकर खूब चबा-चबाकर खा जायें। उसके बाद 3 ग्राम शंखावली का महीन चूर्ण मक्खन में मिलाकर चाट लें और एक गिलास गुनगुना मीठा दूध 1-1 घूँट करके पी लें। अंत में, थोड़े सौंफ मुँह में डालकर धीरे-धीरे 15-20 मिनट तक चबाते रहें और उनका रस चूसते रहें। चूसने के बाद उन्हें निगल जायें।

लाभः यह प्रयोग दिमागी ताकत, तरावट और स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए बेजोड़ है। साथ ही साथ यह शरीर में शक्ति व स्फूर्ति पैदा करता है। लगातार 40 दिन तक प्रतिदिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर खाली पेट इसका सेवन करके आप चमत्कारिक लाभ देख सकते हैं।

यह प्रयोग करने के दो घंटे बाद भोजन करें। उपरोक्त सभी द्रव्य पंसारी या कच्ची दवा बेचने वाले की दुकान से इकट्ठे ले आयें और 15-20 मिनट का समय देकर प्रतिदिन तैयार करें। इस प्रयोग को आप 40 दिन से भी ज्यादा, जब तक चाहें कर सकते हैं।

एक अन्य प्रयोगः एक गाजर और लगभग 50-60 ग्राम पत्ता गोभी अर्थात् 10-12 पत्ते काटकर प्लेट में रख लें। इस पर हरा धनिया काटकर डाल दें। फिर उसमें सेंधा नमक, काली मिर्च का चूर्ण और नींबू का रस मिलाकर खूब चबा चबाकर नाश्ते के रूप में खाया करें।
भोजन के साथ एक गिलास छाछ भी पिया करें।

1) जड़-पत्तों सहित ब्राह्मी को उखाडकर एवं जल से धोकर ओखली में कुटे और कपडे में छाल ले. तत्पश्चात उसके एक तोले रस में छह माशे गौ घृत डालकर पकावे और हल्दी, आँवला, कूट, निसोत, हरड, चार-चार तोले, पीपल, वायविडंग, सेंधा नमक, मिश्री और बच एक-एक तोले इन सबकी चटनी उसमे डालकर मंद आग पर पकावे. जब पानी सुख जाए और घृत शेष रहे, तो उसे छानकर, लेवे और प्रतिदिन प्रातः काल एक तोला घृत चाटे. इसके सेवन से वाणी शुद्ध होती है. सात दिन तक सेवन करने से अनेक शास्त्रों को धारण कराता है. १८ प्रकार के कोढ़, ६ प्रकार के बवासीर, २ प्रकार के गुल्मी, २० प्रकार के प्रमेह और खाँसी दूर होती है. बंध्या स्त्री और अल्प वीर्य वाले मनुष्टों के लिए यह सारस्वत घृत वर्ण, वायु और बल को बढाता है. –चक्रदत्त.

२) बच का एक माशा चूर्ण जल, दूध या घृत के साथ एक मास सेवन करने से मनुष्य पंडित और बुद्धिमान बन जाता है. –वृहन्नीघण्टु

३) बेल कि जड़ का छाल और शतावरी का क्वाथ प्रतिदिन दूध के साथ स्नान और हवन के पश्चात पीजिए. इससे आयु और बुद्धि कि वृद्धि होती है. –सुश्रुत

४) गिलोय, ओंगा, वायविडंग, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बच, सोंठ और शतावर इन सबको बराबर लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनावे और प्रातःकाल चार माशे मिश्री के साथ चाटे, तो तीन हजार श्लोक कंठस्थ करने कि शक्ति हो जाती है.

सावधानियाँ

रात को 9 बजे के बाद पढ़ने के लिए जागरण करें तो आधे-आधे घंटे के अंतर पर आधा गिलास ठंडा पानी पीते रहें। इससे जागरण के कारण होने वाला वातप्रकोप नहीं होगा। वैसे 11 बजे से पहले सो जाना ही उचित है।

लेटकर या झुके हुए बैठकर न पढ़ा करें। रीढ़ की हड्डी सीधी रखकर बैठें। इससे आलस्य या निद्रा का असन नहीं होगा और स्फूर्ति बनी रहेगी। सुस्ती महसूस हो तो थोड़ी चहलकदमी करें। नींद भगाने के लिए चाय या सिगरेट का सेवन कदापि न करें।

Monday 15 April 2013

रामबाण हैं दादी नानी के बताए घरेलू उपचार I

रामबाण हैं दादी नानी के बताए घरेलू उपचार   
जल्द से जल्द आराम पाने की चाह ने दवाओं पर हमारी निर्भरता को इस कदर बढ़ाया दिया है कि मामूली सर्दी जुकाम होने पर भी हम डाक्टर के पास भागते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपके घर में ही कई ऐसी चीजें मौजूद होती हैं जिनके प्रयोग से आप छोटी-छोटी स्वास्थ्य समस्याओं पर काबू पा सकते हैं।

जब सताए मुंहासे:-  आज मुंहासे सिर्फ किशोरों की समस्या नहीं रह गई। बढ़ते प्रदूषण, तनाव, असंतुलित आहार, कम पानी पीने और नशे की आदत के चलते यह आजकल हर उम्र के लोगों की समस्या बन चुका है। इनसे निजात पाने के लिए बाजार में उपलब्ध किसी पिंपल क्रीम को आजमाने के बजाय यह उपाय अपना कर देखें।
मुंहासों पर चंदन का पेस्ट लगाने से यह बैठ जाते हैं। इसके लगातार इस्तेमाल से इनके निशान भी खत्म हो जाते हैं।
नीम के पानी की भाप लेने से मुंहासे धीरे-धीरे कम हो जाते हैं।
बेसन और मट्ठे का पेस्ट व जाय फल और दूध का पेस्ट चेहरे पर लगाने से भी मुंहासे कम होते हैं।
नींबू, टमाटर का रस या कच्चा पपीता लगाने से भी फायदा होता है।
अजवाइन पाउडर को दही में मिला कर चेहरे पर लगाएं। मुंहासों से छुटकारा मिलेगा।

सफेद बालों के लिए नुस्खे:- टेंशन, भाग दौड़ भरी जिंदगी, बालों की ठीक से देखभाल न हो पाने और प्रदूषण के कारण बालों का सफेद होना एक आम समस्या बन गया है। बाल डाई करना या कलर करना इस समस्या का एकमात्र विकल्प नहीं। कुछ घरेलू उपचार आजमा कर भी सफेद बालों को काला किया जा सकता है। कुछ दिनों तक, नहाने से पहले रोजाना सिर में प्याज का पेस्ट लगाएं। बाल सफेद से काले होने लगेंगे। नीबू के रस में आंवला पाउडर मिलाकर सिर पर लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
तिल खाएं। इसका तेल भी बालों को काला करने में कारगर है।
आधा कप दही में चुटकी भर काली मिर्च और चम्मच भर नींबू रस मिलाकर बालों में लगाए। 15 मिनट बाद बाल धो लें। बाल सफेद से काले होने लगेंगे। प्रतिदिन घी से सिर की मालिश करके भी बालों के सफेद होने की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

बाल झड़ने की समस्या:- नीम का पेस्ट सिर में कुछ देर लगाए रखें। फिर बाल धो लें। बाल झड़ना बंद हो जाएगा।
चाय पत्ती के उबले पानी से बाल धोएं। बाल कम गिरेंगे।
बेसन मिला दूध या दही के घोल से बालों को धोएं। फायदा होगा।
दस मिनट का कच्चे पपीता का पेस्ट सिर में लगाएं। बाल नहीं झड़ेंगे और डेंड्रफ (रूसी) भी नहीं होगी।

कफ और सर्दी जुकाम में:- सर्दी जुकाम, कफ आए दिन की समस्या है। आप ये घरेलू उपाय आजमाकर इनसे बचे रह सकते हैं।
नाक बह रही हो तो काली मिर्च, अदरक, तुलसी को शहद में मिलाकर दिन में तीन बार लें। नाक बहना रुक जाएगा।
गले में खराश या सूखा कफ होने पर अदरक के पेस्ट में गुड़ और घी मिलाकर खाएं। आराम मिलेगा।
नहाते समय शरीर पर नमक रगड़ने से भी जुकाम या नाक बहना बंद हो जाता है।
तुलसी के साथ शहद हर दो घंटे में खाएं। कफ से छुटकारा मिलेगा।

शरीर व सांस की दुर्गध कैसे रोकें:- नहाने से पहले शरीर पर बेसन और दही का पेस्ट लगाएं। इससे त्वचा साफ हो जाती है और बंद रोम छिद्र भी खुल जाते हैं। गाजर का जूस रोज पिएं। तन की दुर्गध दूर भगाने में यह कारगर है।
पान के पत्ते और आंवला को बराबर मात्रा में पीसे। नहाने के पहले इसका पेस्ट लगाएं। फायदा होगा।
सांस की बदबू दूर करने के लिए रोज तुलसी के पत्ते चबाएं।
इलाइची और लौंग चूसने से भी सांस की बदबू से निजात मिलता है।

Friday 12 April 2013

चिकित्सा में पंचगव्य क्यों महत्वपूर्ण है ?

चिकित्सा में पंचगव्य क्यों महत्वपूर्ण है ?
-------------------------------------

गाय के दूध, घृत, दधी, गोमूत्र और गोबर के रस को मिलाकर पंचगव्य तैयार होता है । पंचगव्य के प्रत्येक घटक द्रव्य महत्वपूर्ण गुणों से संपन्न हैं।

इनमें गाय के दूध के समान पौष्टिक और संतुलित आहार कोई नहीं है। इसे अमृत माना जाता है। यह विपाक में मधुर, शीतल, वातपित्त शामक, रक्तविकार नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है।गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय गुणों से भरपूर है। गाय के दही सेबना छाछ पचने में आसान और पित्त का नाश करने वाला होता है।

गाय का घी विशेष रूप से नेत्रों के लिए उपयोगी और बुद्धि-बल दायक होता है। इसका सेवन कांतिवर्धक माना जाता है।
गोमूत्र प्लीहा रोगों के निवारण में परम उपयोगी है। रासायनिक दृष्टि से देखने पर इसमें पोटेशियम, मैग्रेशियम, कैलशियम, यूरिया, अमोनिया, क्लोराइड, क्रियेटिनिन जल एवं फास्फेट आदि द्रव्य पाये जाते हैं।

गोमूत्र कफ नाशक, शूल गुला, उदर रोग, नेत्र रोग, मूत्राशय के रोग, कष्ठ, कास, श्वास रोग नाशक, शोथ, यकृत रोगों में राम-बाण का काम करता है।

चिकित्सा में इसका अन्त: बाह्य एवं वस्ति प्रयोग के रूप में उपयोग किया जाता है। यह अनेक पुराने एवं असाध्य रोगों में परम उपयोगी है।

गोबर का उपयोग वैदिक काल से आज तक पवित्रीकरण हेतु भारतीय संस्कृति में किया जाता रहा है। यह दुर्गंधनाशक, पोषक, शोधक, बल वर्धक गुणों से युक्त है। विभिन्न वनस्पतियां, जो गाय चरती है उनके गुणों के प्रभावित गोमय पवित्र और रोग-शोक नाशक है।

अपनी इन्हीं औषधीय गुणों की खान के कारण पंचगव्य चिकित्सा में उपयोगी साबित हो रहा है।

Saturday 6 April 2013

ONIONS in the juices


ONIONS in the juices:-

Here are some of the reasons why onions are included in the juices:

Anemia: The high content of iron in onion makes it beneficial for the treatment of anemia.

Anti-coagulant: Just by eating half a medium raw onion daily can significantly lower cholesterol and help prevent heart attacks.

Anti-inflammatory: The anti-inflammatory agents in onion are useful in reducing the symptoms of inflammatory conditions such as arthritis and gout.

Anti-septic: Fights infection bacteria, including E.coli and salmonella, and is effective against tuberculosis and infections of the urinary tract, such as cystitis.

Blood pressure:
Whether you eat it raw or cooked, onions help to lower blood pressure naturally. It also thins the blood, dissolve blood clots and clear the blood of unhealthy fats.

Cholesterol:
Eating half a medium raw onion daily significantly helps to correct thrombosis, lower the LDL cholesterol and prevents heart attacks.

Colon cancer, prevention:
Fructo-oligosaccharides in onions stimulate the growth of good bacteria in the colon and help reduce the risk of tumors developing in the colon.

Constipation and flatulence:
Add plenty onion in your cooking to help relieve chronic constipation and flatulence.

Diabetes: Chromium in onion helps diabetics' cells respond appropriately to bringing down the insulin level and improve glucose tolerance.

Diuretic and blood cleansing: Help counter fluid retention, arthritis and gout.

Immune booster:
The pungency increases blood circulation and causes sweating. Useful in cold weather to ward off infection, reduce fever and sweat out colds and flu.

Osteoporosis:
A compound has recently been identified in onions that prevents the activities of breaking down bone. Especially beneficial for women who are at risk for osteoporosis as they go through menopause.

Respiratory:
Mix equal amounts of onion juice and honey and take 3-4 teaspoons of this mixture daily. It helps liquefy mucus and prevents its further formation. It is also one of the best preventive potion against common cold.

Sexual debility:
Onion is a potent aphrodisiac and stands second only to garlic. For this, the white variety is most effective.

Urinary tract infection:
Boil some onion in water till half of the water evaporated. Sieve the onion water, leave to cool and drink. The anti-bacterial properties help to relieve the burning sensation in urination.



मांसाहार से हानियाँ

 मांसाहार से हानियाँ

वैश्विक ऊष्मण (Global Warming) को कम करने के लिए 1997 में जापान के क्योटो शहर में दुनिया के 156 देशों के द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई जिसे क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) कहते हैं। इसका उद्देश्य वैश्विक ऊष्मण के कारणों का पता लगाना था। इसमें वैज्ञानिकों का एक बड़ा दल बना जिसके अध्यक्ष थे - डॉ॰ आर॰ के॰ पचौरी। इस दल ने 4 वर्षों के अध्ययन के बाद बताया की सारी दुनिया में गर्मी बढ्ने का मुख्य कारण है लोगों द्वारा मांसाहारी भोजन का उपयोग एवं उपभोग।

* दुनिया भर में मांस उत्पादन: दुनिया में लगभग 200 देश हैं और सभी देशों को मिलाकर मांस का कुल उत्पादन 26 करोड़ 50 लाख मीट्रिक टन (एक मीट्रिक टन में लगभग 1000 किग्रा॰ होते हैं)। मांस कंपनियों का कहना है की 2050 तक इस उत्पादन को 46 करोड़ मीट्रिक टन कर देंगे, माने आज के उत्पादन का लगभग दो गुना। इसके मांस कंपनियां पूरी दुनिया को मांसाहारी बनाने के काम में लग गयी हैं। इनके विज्ञापन रोज़ टीवी पर आ रहे हैं। ये मांस कंपनियों का ही विज्ञापन है "संडे हो या मंडे, रोज़ खाओ अंडे" ? और हमारे देश के कई अभिनेता, अभिनेत्री, खिलाड़ी और सम्माननीय लोग पैसे के लालच में अंडों का विज्ञापन करते हैं, जो खुद निजी ज़िंदगी में शाकाहारी हैं।
कुल मांस का उत्पादन 26 करोड़ 50 लाख मीट्रिक टन है जिसमें से मुर्गे मुर्गियों के मांस का उत्पादन है 1 करोड़ मीट्रिक टन। सूअर के मांस का उत्पादन है 10 करोड़ मीट्रिक टन। गाय के मांस का उत्पादन है 6 करोड़ मीट्रिक टन। इतने मांस के उत्पादन के लिए हर साल पूरी दुनिया में 46 अरब (4600 करोड़) जानवरों का कत्ल होता है।

* भारत की स्थिति: भारत में हर साल 58 लाख मीट्रिक टन मांस का उत्पादन होता है अर्थात् पूरी दुनिया के मांस उत्पादन का लगभग 2%। भारत में 121 करोड़ नागरिक हैं जिनमें 70% शाकाहारी और 30% मांसाहारी हैं। भारत सरकार के 2009 के आंकड़ों के अनुसार भारत में मांस के उत्पादन में गाय का मांस 14 लाख टन पैदा होता है, भैंस का मांस करीब 14 लाख टन, मटन करीब 2.5 लाख टन, सूअर का मांस करीब 6 लाख 30 हज़ार टन, मुर्गे- मुर्गियों का मांस 16 लाख टन और बाकी छोटे जानवरों का शामिल है। इतने मांस के उत्पादन के लिए भारत में करीब 10 करोड़ 50 लाख जानवरों का कत्ल किया गया। इनमें करीब 4.5 करोड़ गाय, भैंस, बैल हैं और बाकी छोटे जानवर जैसे- बकरे- बकरी, मुर्गे- मुर्गी आदि।
भारत में 3600 सरकार के रजिस्टर्ड (Registered) कत्लखाने हैं और करीब 36000 अनरजिस्टर्ड (Unregistered) कत्लखाने हैं।

* भोजन की कमी और मांसाहार: 1 एकड़ खेत के एक साल के उत्पादन से 22 लोगों का पेट भरा जा सकता है लेकिन यदि उसी एक एकड़ खेत के एक साल के उत्पादन को अगर जानवरों को खिलाया जाए और फिर उनका मांस खाया जाए तो केवल 2 लोगों का पेट साल भर के लिए भरा जा सकता है।
जानवरों को अनाज इसलिए खिलाया जाता है ताकि उनमें मांस बढ़े और जिन्हें मांस खाना है उन्हें अच्छा मांस मिल सके। विकासशील देशों में जानवरों को कुल कृषि से उत्पन्न अन्न का लगभग 40% हिस्सा खिला दिया जाता है। भारत जैसे 186 विकासशील देश हैं जो कुल कृषि की उपज का 40% हिस्सा जानवरों को खिला देते हैं। विकसित देशों में जानवरों को कुल कृषि से उत्पन्न अन्न का लगभग 70% हिस्सा खिला दिया जाता है। अमेरिका जैसे दुनिया में 17 विकसित देश हैं। अगर 40% और 70% का औसत निकाला जाए तो 55% निकलता है। अर्थात् दुनिया में औसतन आधा अनाज जानवरों को खिलाकर, उनके मांस को कुछ लोग खाते हैं। इससे अच्छा अगर वो अनाज सीधे ही हम खा जाएँ और जानवरों वाला अनाज मनुष्यों को खाने को मिल जाए तो सारी दुनिया में कहीं भी (एशिया, अफ्रीका में) भूखमरी नहीं होगी। यूएन के अनुसार हर दिन दुनिया में 40,000 लोग भूख से मर जाते हैं। सारी दुनिया में 200 करोड़ लोग भुखमरी की कगार पर हैं अर्थात् दुनिया की करीब 1/3 जनसंख्या भुखमरी की कगार पर है। यूएन की संस्था एफ़एओ (FAO) का कहना है की अगर सारी दुनिया में मांस खाने वाले लोग अपने मांस के उपभोग में सिर्फ 10% की कटौती कर दें या 10% लोग शाकाहारी हो जाएँ तो पूरी दुनिया में एक भी व्यक्ति भूख से नहीं मरेगा।

अमेरिका में हर आदमी एक साल में 165 किलो, चीन में 95 किलो, यूरोप और कनाडा में 130 किलो और भारत में 3.5 किलो मांस प्रतिवर्ष खाता है।

* अब आप सोचेंगे जानवरों के लिए भोजन कहाँ से आयेगा ??
प्रकृति ने बहुत सुंदर व्यवस्था कर राखी है जहां से हमारे लिए भोजन आता है, वहीं से जानवरों के लिए भी पैदा होता है। गेहूं के पौधे का ऊपर वाला लगभग एक फुट का हिस्सा ही हमारे काम आता है और बचा हुआ नीचे का 6-7 फुट जानवरों के काम आता है। इसी तरह मक्का और बाजरा में भी ऊपर का बाल वाला एक फुट हिस्सा हमारे काम आता है और बाकी का जानवरों के काम आता है। मनुष्य के लिए कुल जितना उत्पादन चाहिए उससे 6-7 गुना ज्यादा उत्पादन चारे का हो जाता है।

* मांस उद्योग के कर्ण जंगलों की कटाई: वैज्ञानिकों का कहना है की जंगलों की कटाई का सबसे बड़ा कारण है- मांस उद्योग का बढ़ते जाना। मांस उद्योग में मांस की पैकिंग और उस पैकिंग को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल है- लकड़ी। जिस कच्चे माल का डिब्बे बनाने में इस्तेमाल होता है। वैज्ञानिकों का कहना है की जंगलों की समाप्ति को अगर रोकना है तो मांस उद्योग को बंद कर दिया जाए।

* मांस उद्योग में पानी की बर्बादी: एक किलो मांस पैदा करने में न्यूनतम 70,000 लीटर पानी लगता है तो 285000000 मीट्रिक टन मांस पैदा करने के लिए 19950000000000000 लीटर पानी बर्बाद होता है।
अर्थात् हम छ: महीने नहाने में जो पानी खर्च करते हैं, उतना ही पानी एक किलो मांस पैदा करने में लग जाता है। अच्छे से अच्छा पानी पीने वाला व्यक्ति अगर एक दिन में 3 लीटर पानी पिये तो महीने में 90 लीटर और साल में 900-1000 लीटर पानी पिएगा। इस तरह 70 साल में वो व्यक्ति 70000 लीटर पानी पिएगा, उतना पानी 1 किलो मांस के उत्पादन में लगता है।
भारत में 20 करोड़ परिवार हैं। मांस पैदा करने वाले उद्योग के लिए एक साल में जितना पानी खर्च होता है उतने ही खर्च में 20 करोड़ परिवारों का सारी ज़िंदगी का पानी का खर्च चल सकता है। एक तरफ भारत ए 14 करोड़ परिवारों को पीने का शुद्ध पानी न मिले और दूसरी तरफ मांस उत्पादन करने वाली कंपनियां लाखों लीटर पानी बर्बाद करें। ये तो बहुत बड़ा अन्याय है ???

* मांस उद्योग के कारण प्राकृतिक आपदाएँ: कत्लखानों में जानवरों को तड़पा तड़पा कर मारा जाता है। बड़े जानवरों को भूखा रखकर उनके शरीर को कमजोर किया जाता है, फिर उनके ऊपर गरम पानी (70-100 डिग्री सेंटीग्रेट) की बौछार डाली जाती है, जिससे उनका शरीर फूलना शुरू हो जाता है। जब उनका शरीर पूरी तरह फूल जाता है तो जीवित अवस्था में ही उनकी खाल को उतारा जाता है। निकालने वाले खून को इकट्ठा किया जाता है और धीरे-2 जानवर मर जाते हैं। इस प्रक्रिया में जानवर बहुत तेज़ चीखते- चिल्लाते हैं। जानवरों की चीखें पूरे वातावरण को तरंगित कर देती हैं और वातावरण में घूमती रहती हैं। इसका वातावरण और मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह नकारात्मक प्रभाव जब बढ्ने लगता है तो लोगों में हिंसा की प्रवत्ति बढ्ने लगती है और इस हिंसा और नाकारात्मकता के कारण दुनिया में अत्याचार और पाप बढ़ रहा है।
"दिल्ली विश्वविद्यालय के 3 प्रोफेसर है जिन्होने 20 साल इस पर रिसर्च और अध्ययन किया है ये नाम हैं डॉ॰ मदन मोहन बजाज, डॉ॰ मोहम्मद सैय्यद मोहम्मद इब्राहिम और डॉ। विजय राज सिंह उनकी भौतिकी (Physics) की रिसर्च कहती है की जितना जानवरों को कत्ल किया जाएगा, जानवरों पर जितनी हिंसा की जाएगी, उतना ही अधिक दुनिया में भूकंप आएंगे। उन्होने दुनिया और भारत में जहां जहां कत्लखाने हैं वहाँ रहकर देखा। जानवरों के निकालने वाली Shock Waves को एब्सॉर्ब (Absorb) किया और उनको नापा, तौला और उनका अध्ययन किया और पाया की दुनिया में जो प्राकृतिक आपदाएँ हो रही हैं उनका बहुत बड़ा कारण हैं- कत्लखाने और उनसे निकालने वाली जानवरों की चीख पुकार।

* क्या आप जानते हैं ??
१. कैलिफोर्निया में दुनिया का सबसे बड़ा कत्लखाना है जहां दिन में 36,000 गायों को काटा जाता है।
२. महाराष्ट्र के देवनार में भारत का सबसे बड़ा कत्लखाना है जहां प्रतिदिन 14,000 गायों को काटा जाता है।

Wednesday 3 April 2013

ऐसा था एतिहासिक टीपू सुल्तान I

ऐसा था एतिहासिक टीपू सुल्तान
*********************
हैदर अली की म्रत्यु के बाद उसका पुत्र टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठते ही टीपू ने मैसूर को मुस्लिम राज्य घोषित कर दिया। मुस्लिम सुल्तानों की परम्परा के अनुसार टीपू ने एक आम दरबार में घोषणा की ---"मै सभी काफिरों को मुस्लमान बनाकर रहूंगा। "तुंरत ही उसने सभी हिन्दुओं को फरमान भी जारी कर दिया.उसने मैसूर के गाव- गाँव के मुस्लिम अधिकारियों के पास लिखित सूचना भिजवादी कि, "सभी हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षा दो। जो स्वेच्छा से मुसलमान न बने उसे बलपूर्वक मुसलमान बनाओ और जो पुरूष विरोध करे, उनका कत्ल करवा दो.उनकी स्त्रिओं को पकडकर उन्हें दासी बनाकर मुसलमानों में बाँट दो। "

इस्लामीकरण का यह तांडव टीपू ने इतनी तेजी से चलाया कि , पूरे हिंदू समाज में त्राहि त्राहि मच गई.इस्लामिक दानवों से बचने का कोई उपाय न देखकर धर्म रक्षा के विचार से हजारों हिंदू स्त्री पुरुषों ने अपने बच्चों सहित तुंगभद्रा आदि नदिओं में कूद कर जान दे दी। हजारों ने अग्नि में प्रवेश कर अपनी जान दे दी ,किंतु धर्म त्यागना स्वीकार नही किया।

टीपू सुलतान को हमारे इतिहास में एक प्रजावत्सल राजा के रूप में दर्शाया गया है।टीपू ने अपने राज्य में लगभग ५ लाख हिन्दुओ को जबरन मुस्लमान बनाया। लाखों की संख्या में कत्ल कराये। कुछ एतिहासिक तथ्य मेरे पास उपलब्ध जिनसे टीपू के दानवी ह्रदय का पता चलता है...............

टीपू के शब्दों में "यदि सारी दुनिया भी मुझे मिल जाए,तब भी में हिंदू मंदिरों को नष्ट करने से नही रुकुंगा."(फ्रीडम स्ट्रगल इन केरल)

"दी मैसूर गजेतिअर" में लिखा है"टीपू ने लगभग १००० मंदिरों का ध्वस्त किया। २२ मार्च १७२७ को टीपू ने अपने एक सेनानायक अब्दुल कादिर को एक पत्र likha ki,"१२००० से अधिक हिंदू मुस्लमान बना दिए गए।"

१४ दिसम्बर १७९० को अपने सेनानायकों को पात्र लिखा की,"में तुम्हारे पास मीर हुसैन के साथ दो अनुयाई भेज रहा हूँ उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बंदी बना लेना और २० वर्ष से कम आयु वालों को कारागार में रख लेना और शेष सभी को पेड़ से लटकाकर वध कर देना"

टीपू ने अपनी तलवार पर भी खुदवाया था ,"मेरे मालिक मेरी सहायता कर कि, में संसार से काफिरों(गैर मुसलमान) को समाप्त कर दूँ"

ऐसे कितने और ऐतिहासिक तथ्य टीपू सुलतान को एक मतान्ध ,निर्दयी ,हिन्दुओं का संहारक साबित करते हैं क्या ये हिन्दू समाज के साथ अन्याय नही है कि, हिन्दुओं के हत्यारे को हिन्दू समाज के सामने ही एक वीर देशभक्त राजा बताया जाता है, अगर टीपू जैसे हत्यारे को भारत का आदर्श शासक बताया जायेगा तब तो सभी इस्लामिक आतंकवादी भारतीय इतिहास के ऐतिहासिक महान पुरुष बनेगे। वाह रे वाह भारत का धर्मनिरपेक्ष इतिहास।