Friday 29 November 2013

आंवले के प्रयोग

 1- गर्मी से बचाव : -गर्मी में आंवले का शर्बत पीने से बार-बार प्यास नहीं लगती तथा गर्मी के रोगों से बचाव होता है

2- स्वप्नदोष : - * एक मुरब्बे का आंवला नित्य खाने से लाभ होता है। * एक कांच के गिलास में सूखे आंवले 20 ग्राम पीसकर डालें। इसमें 60 ग्राम पानी भरें और फिर 12 घंटे भीगने दें। फिर छानकर इस पानी में 1 ग्राम पिसी हुई हल्दी डालकर पीएं। यह युवकों के स्वप्नदोष (नाइटफाल) के लिए बहुत ही उपयोगी है।

3- पुराना बुखार : -मूंग की दाल में सूखा आंवला डालकर पकाकर खाएं।

4- खूनी बवासीर : -सूखे आंवले को बारीक पीसकर एक चाय का चम्मच सुबह-शाम 2 बार छाछ या गाय के दूध से लेने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।

5- खून की कमी : - * आंवले का चूर्ण 3 से 6 ग्राम प्रतिदिन शहद के साथ लेने से खून में वृद्धि होती है। * खून की कमी के रोगी को एक चम्मच आंवले का चूर्ण और 2 चम्मच तिल के चूर्ण लेकर शहद के साथ मिलाकर खिलाने से एक महीने में ही रोग में लाभ होता है।

6- पाचन-शक्तिवर्धक : - खाने के बाद 1 चम्मच सूखे आंवले के चूर्ण की फंकी लेने से पाचन-शक्ति बढ़ती है, मल बंधकर आता है।

7- शक्तिवर्धक : -पिसा हुआ आंवला 1 चम्मच, 2 चम्मच शहद में मिला कर चाटें, ऊपर से दूध पीएं। इससे सदा स्वास्थ्य अच्छा रहता है। दिनभर प्रसन्नता का अनुभव होता है। जब ताजे आंवले मिलते हो तो सुबह आधा कप आंवले के रस में 2 चम्मच शहद आधा कप पानी मिला कर पीएं। ऊपर से दूध पीएं। इससे थके हुए ज्ञान-तंतुओं को उत्तम पोषण मिलता है। कुछ ही दिन नित्य पीने पर शरीर में नई शक्ति और चेतना आयेगी जीवन में यौवन की बहार आयेगी। जो लोग स्वस्थ रहना चाहते है, उन्हें इस प्रकार आंवले का रस नित्य पीना चाहिए।

8- स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए : -प्रतिदिन सुबह आंवले का मुरब्बा खाएं।

9- नेत्र-शक्ति बढ़ाने के लिए : -आंवले के सेवन से आंखों की दृष्टि बढ़ती है। 250 ग्राम पानी में 6 ग्राम सूखे आंवले को रात को भिगो दें। प्रात: इस पानी को छानकर आंखें धोयें। इससे आंखों के सब रोग दूर होते हैं और आंखों की दृष्टि बढ़ती है। सूखे आंवले के चूर्ण की 1 चाय की चम्मच की फंकी रात को पानी से लें।

10- कटने से खून निकलने पर : -कटे हुए स्थान पर आंवले का ताजा रस लगाने से खून निकलना बंद हो जाता है।

Wednesday 27 November 2013

Lactose Intolerance। लेक्टोज़ इनटोलरेंस:-


1. दूध में क्या होता है?

दूध में पानी, चीनी, प्रोटीन, फेट और अनेक अन्य सामग्री होता है। ये शरीर के लिये लाभदायक होते हैं।

2. लेक्टोज़ (lactose) क्या होता है?

लेक्टोज़, दूध में उपस्थित उपस्थित, एक प्रकार के चीनी को कहते हैं। यह एक तरह का कार्बोहाईड्रेट (carbohydrate) हुआ। इसको पचाने के लिये शरीर में एक विशेष एंज़ाईम का जरूरत होता है, जिसे “लेक्टेज़ एंज़ाईम (lactase enzyme)” कहते हैं। यह अंतड़ी के उपरी स्तर, जिसे “इंटेस्टाईनल म्युकोज़ा (intestinal mucosa)” कहते हैं, उसपर मौजूद होता है।

3. लेक्टोज़ इनटोलरेंस किसको कहते हैं?

लेक्टोज़, को पचाने में कठिनाई को लेक्टोज़ इनटोलरेंस कहते हैं। इसमें किसी कारण से अगर इंटेस्टाईनल म्युकोज़ा पर लेक्टेज़ एंज़ाईम का कमी हो जाता है, तो उसे लेक्टोज़ इनटोलरेंस कहते हैं।

4. लेक्टोज़ इनटोलरेंस किस स्थिती में हो सकता है?

लेक्टोज़ इनटोलरेंस, लेक्टेज़ एंज़ाईम के कमी से होता है। यह नीचे लिखे हुये स्थिती में हो सकता है।

उम्र के साथ लेक्टेज़ एंज़ाईम में कमी। यह बड़े लोगों में होता है, जो खास करके दूध-दही कम खाते हैं, और पाश्चात्य खाना अधिक खाते हैं। उनके शरीर में लेक्टेज़ एंज़ाईम बनना कम हो जाता है। यह अंदाज किया जाता है कि भारत में, एक चौथाई से आधे लोगों में लेक्टेज़ एंज़ाईम का कमी हो जाता है। कभी कभार ये बच्चों में भी पाया जाता है। इसको प्राईमरी लेक्टोज़ इनटोलरेंस (Primary lactose intolerance) कहते हैं।

अगर किसी बीमारी से इंटेस्टाईनल म्युकोज़ा को नुकसान पहुंचता है, जिससे कि लेक्टेज़ एंज़ाईम का कमी हो जाता है। यह क्षणिक हो सकता है, जैसे कि कोई खराब खाना से पेट खराब होना और दस्त लगना (diarrhea)। उदाहरण के लिये पेट में रोटा वायरस (rota virus), या फिर पेट में कीड़ा जैसे कि जीयारडिया (giardia) होने से कुछ समय के लिये लेक्टेज़ एंज़ाईम का कमी हो जाता है। अथवा, यह लंबे समय तक चल सकता है, जैसे कि कोई अंतड़ी का बीमारी, जैसे कि सिलियेक डिसीज़ (celiac disease), क्रोंस डिसीज़ (crohn’s disease) । कुछ नवजात शिशु को, उनके लेक्टेज़ एंज़ाईम के पाचन शक्ति से बहुत अधिक दूध पिलाने से, कुछ समय के लिये लेक्टेज़ एंज़ाईम का कमी हो जाता है। इन सभी तरह के परिस्थिति के लेक्टेज़ एंज़ाईम के कमी को सेकंडरी लेक्टोज़ इनटोलरेंस (Secondary lactose intolerance) कहते हैं।

कुछ नवजात शिशु को जन्म से ही लेक्टेज़ एंज़ाईम का कमी होता है, जिसे कि कंजेनिटल लेक्टेज़ डेफिसियेंसी (congenital lactase deficiency) कहते हैं।
कुछ शिशु समय से पहले पैदा होते हैं, जिन्हें प्रिमेच्योर बेबी (premature baby) कहते हैं। गर्भ के आखिरी महीनों में इंटेस्टाईनल म्युकोज़ा में लेक्टेज़ एंज़ाईम बनता है। समय से पहले पैदा होने पर, इस लेक्टेज़ एंज़ाईम से वो वंचित रह जाते हैं। लेकिन यह कुछ महीनों में ठीक हो सकता है।
कुछ देश के लोग, जैसे कि चाईना (china) के लोग, को जेनेटिक्स के कारण लेक्टोज़ इनटोलरेंस होता है।

5. लेक्टोज़ इनटोलरेंस में क्या लक्षण (symptoms) होता है?

लेक्टोज़ इनटोलरेंस, में कोई भी दूध पीने से हाजमा खराब हो जाता है। इसमें पेट भरा लगता है, पेट दर्द देता है, पेट फूला लगता है, हवा निकलता है और उल्टी लगता है।

6. लेक्टोज़ इनटोलरेंस में क्या जांच होता है?

क्योंकि लेक्टोज़ इनटोलरेंस अधिकतर लोगों में पाया जाता है, इसको साधारणतः बीमारी नहीं माना जाता है। इसीलिये, इसका जांच नहीं किया जाता है। वैसे जरूरत पड़ने पर इसके लिये जांच किया जा सकता है।

7. लेक्टोज़ इनटोलरेंस के अलावा क्या हो सकता है?

लेक्टोज़ इनटोलरेंस के समान लक्षण वाला रोग है दूध के प्रोटीन से एलर्जी। एलर्जी अधिक खतरनाक होता है, और पैखाने में खून भी आ सकता है। इसके लिये स्पेशलिस्ट डाक्टर से जांच करायें। इसके अलावा, उपर लिखे हुये अन्य बीमारी भी लेक्टोज़ इनटोलरेंस दे सकता है।

8. लेक्टोज़ इनटोलरेंस के लिये डाक्टर के पास कब जाना चाहिये?

क्योंकि लेक्टोज़ इनटोलरेंस विभिन्न बीमारी में पाया जाता है, इसके लिये आपको डाक्टर के पास जरूर जाना चाहिये कि कोई अन्य बीमारी तो नहीं है?

9. लेक्टोज़ इनटोलरेंस में दूध कम पीने से क्या होगा?

सबसे प्रमुख, शरीर को केलसियम (calcium) मिलना बंद हो जायेगा। इसके अलावा, दूध से अन्य चीज मिलना बंद हो जायेगा।

10. अन्य किन खाना से लेक्टोज़ मिल सकता है?

लेक्टोज़ एक तरह का चीनी है। यह दूध के अलावा, अनेक प्रकार का खाना और दवा में हो सकता है। उदाहरण के लिये – ब्रेड, कोर्नफ्लेक्स, पोटाटो चिप्स, और अन्य पैकेट फुड में।

11. लेक्टोज़ इनटोलरेंस में किस प्रकार का दूध पदार्थ खा सकते हैं?
जिन लोग को लेक्टोज़ इनटोलरेंस है, वो कम मात्रा में नीचे लिखे चीज खा सकते हैं।

* दही
* छाछ या मट्ठा या मक्खन निकाला हुआ दूध (buttermilk)
* पुराना चीज़ (aged cheese)
* सोयाबीन का दूध, अगर आपको सोयाबीन से कोई एलर्जी नहीं है
* जिस पदार्थ में लेक्टोज़ नहीं हो
* आईसक्रीम
* मिल्कशेक
* बकरी का दूध

12. लेक्टोज़ इनटोलरेंस में और क्या कर सकते हैं, कि कोई तकलीफ न हो?
आप दूध अगर लेना चाहें, तो कम कम करके, जैसे कि एक चौथाई से आधा कप तक, अधिक बार लें।

दूध खाने के साथ लें, लेक्टोज़ रहित खाद्य प्दार्थ लें, उपर बताय गये दूध के बदले अन्य प्दार्थ लें, अन्य तरह के खाना और दवा में, लेक्टोज़ के तरफ ध्यान दें, अन्य तरह से केलसियम लें, जैसे कि बदाम, हरी सब्जी, मछली, पनीर, सोया, और केलसियम के दवा, लेक्टेज़ एंज़ाईम का दवा ले सकते हैं
और अन्य दवा जो कि पेट दर्द या दस्त के लिये ले सकते हैं

दस्त के लिये नमक-पानी का घोल या ओ आर एस के घोल के बारे में जानें
अपने अन्य बीमारी, जैसे कि कोई पेट का इंफेक्शन या अंतरी का बीमारी का इलाज करायें ।


काले बर्तन या काला ज़हर…


टेफलोन शीट तो याद होगी सबको कैसे याद नहीं होगी आजकल दिन की शुरुवात ही उससे होती है चाय बनानी है तो नॉन स्टिक तपेली (पतीली), तवा, फ्राई पेन, ना जाने कितने ही बर्तन हमारे घर में है जो टेफलोन कोटिंग वाले हैं फास्ट टूकुक इजी टू क्लीन वाली छवि वाले ये बर्तन हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए है, जब ये लिख रही हू तो दादी नानी वाला ज़माना याद आ जाता है जब चमकते हुए बर्तन स्टेंडर्ड की निशानी माने जाते थे आजकल उनकी जगह काले बर्तनों ने ले ली.

हम सब इन बर्तनों को अपने घर में उपयोग में लेते आए है और शायद कोई बहुत बेहतर विकल्प ना मिल जाने तक आगे भी उपयोग करते रहेंगे पर, इनका उपयोग करते समय हम ये बात भूल जाते है की ये हमारे शरीर को नुक्सान पहुंचा सकते है या हम में से कई लोग ये बात जानते भी नहीं की सच में ऐसा कुछ हो सकता है कि ये बर्तन हमारी बीमारियाँ बढ़ा सकते है या हमारे अपनों को तकलीफ दे सकते है और हमारे पक्षियों की जान भी ले सकते है.
चौंकिए मत ये सच है. हालाँकि टेफलोन को 20 वी शताब्दी की सबसे बेहतरीन केमिकल खोज में से एक माना गया है स्पेस सुइट और पाइप में इसका प्रयोग उर्जा रोधी के रूप में किया जाने लगा पर ये भी एक बड़ा सच है की ये स्वास्थ के लिए हानिकारक है इसके हानिकारक प्रभाव जन्मजात बिमारियों ,सांस की बीमारी जेसी कई बिमारियों के रूप में देखे जा सकते हैं. ये भी सच है की जब टेफलोन कोटेड बर्तन को अधिक गर्म किया जाता है तो पक्षियों की जान जाने का खतरा काफी बढ़ जाता है कुछ ही समय पहले 14 पक्षी तब मारे गए जब टेफलोन के बर्तन को पहले से गरम किया गया और तेज आंच पर खाना बनाया गया, ये पूरी घटना होने में सिर्फ 15 मिनिट लगे. टेफलोन कोटेड बर्तनों में सिर्फ 5 मिनिट में 721 डिग्री टेम्प्रेचर तक गर्म हो जाने की प्रवृति देखी गई है और इसी दोरान 6 तरह की गैस वातावरण में फैलती है इनमे से 2 एसी गैस होती है जो केंसर को जन्म दे सकती है. अध्ययन बताते हैं कि टेफलोन को अधिक गर्म करने से टेफलोन टोक्सिकोसिस (पक्षियों के मामले में ) और पोलिमर फ्यूम फीवर ( इंसानों के मामले में ) की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है

टेफलोन केमिकल के शरीर में जाने से होने वाली बीमारियाँ:

1 . पुरुष इनफर्टिलिटी : हाल ही में किए गए एक डच अध्यन में ये बात सामने आई है लम्बे समय तक टेफलोन केमिकल के शरीर में जाने से पुरुष इनफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है और इससे सम्बंधित कई बीमारियाँ पुरुषों में देखी जा सकती है.

२. थायराइड : हाल ही में एक अमेरिकन एजेंसी द्वारा किया गए अध्यन में ये बात सामने आई क2 टेफलोन की मात्र लगातार शरीर में जाने से थायराइड ग्रंथि सम्बन्धी समस्याएं हो सकती है.

3. बच्चे को जन्म देने में समस्या : केलिफोर्निया में हुई एक स्टडी में ये पाया गया की जिन महिलाओं के शरीर में जल ,वायु या भोजन किसी भी माध्यम से पी ऍफ़ ओ (टेफलोन) की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई उन्हें बच्चो को जन्म देते समय अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा इसी के साथ उनमे बच्चो को जन्म देने की शमता भी अपेक्षाकृत कम पाई गई.

4 . केंसर या ब्रेन ट्यूमर का खतरा : एक प्रयोग के दौरान जब चूहों को पी ऍफ़ ओ के इंजेक्शन लगाए गए तो उनमे ब्रेन ट्यूमर विकसित हो गया साथ ही केंसर के लक्षण भी दिखाई देने लगे. पी ऍफ़ ओ जब एक बार शरीर के अन्दर चला जाता है तो लगभग 4 साल तक शरीर में बना रहता है जो एक बड़ा खतरा हो सकता है .

5. शारीरिक समस्याएं व अन्य बीमारियाँ : पी ऍफ़ ओ की अधिक मात्रा शरीर में पाई जाने वाली महिलाओं के बच्चो पर भी इसका असर जन्मजात शारीरिक समस्याओं के रूप में देखा गया है इसीस के साथ अद्द्याँ में ये सामने आया है की पी ऍफ़ ओ की अधिक मात्रा लीवर केंसर का खतरा बढ़ा देती है .

टेफलोन के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय:

टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों को कभी भी गैस पर बिना कोई सामान डाले अकेले गर्म होने के लिए ना छोड़े. इन बर्तनों को कभी भी ४५० डिग्री से अधिक टेम्प्रेचर पर गर्म ने करे सामान्यतया इन्हें ३५० से ४५० डिग्री तक गर्म करना बेहतर होता है टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों में पक रहा खाना बनाने के लिए कभी भी मेटल की चम्मचो का इस्तेमाल ना करे इनसे कोटिंग हटने का खतरा बढ़ जाता है टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों को कभी भी लोहे के औजार या कूंचे ब्रुश से साफ़ ना करे , हाथ या स्पंज से ही इन्हें साफ़ करे इन बर्तनों को कभी भी एक दुसरे के ऊपर जमाकर ना रखे घर में अगर पालतू पक्षी है तो इन्हें अपने किचन से दूर रखें अगर गलती से घर में एसा कोई बर्तन ज्यादा टेम्प्रेचर पर गर्म हो गया है तो कुछ देर के लिए घर से बाहर चले जाए और सारे खिड़की दरवाजे खोल दे पर ये गलती बार बार ना दोहराएं क्यूंकि बाहर के वातावरण के लिए भी ये गैस हानिकारक है टूटे या जगह ,जगह से घिसे हुए टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों का उपयोग बंद कर दे क्यूंकि ये धीरे धीरे आपके भोजन में ज़हर घोल सकते है, अगर आपके बर्तन नहीं भी घिसे है तो भी इन्हें २ साल में बदल लेने की सलाह दी जाती है जहाँ तक हो सके इन बर्तनों कम ही प्रयोग करिए इन छोटी छोटी बातों का ध्यान रखकर आप अपने और अपने परिवार के स्वास्थ को बेहतर बना सकते हैं.

Tuesday 26 November 2013

गौ- घृत:-


गौ- घृत के चमत्कारिक फायदे हम अगर गोरस का बखान करते करते मर जाए तो भी कुछ अंग्रेजी सभ्यता वाले हमारी बात नहीं मानेगे क्योकि वे लोग तो हम लोगो को पिछड़ा, साम्प्रदायिक और गँवार जो समझते है| उनके लिए तो वही सही है जो पश्चिम कहे तो हम उन्ही के वैज्ञानिक शिरोविच की गोरस पर खोज लाये हैं जो रुसी वैज्ञानिक है| गाय का घी और चावल की आहुती डालने से महत्वपूर्ण गैसे जैसे – एथिलीन ऑक्साइड,प्रोपिलीन ऑक्साइड,फॉर्मल्डीहाइड आदि उत्पन्न होती हैं । इथिलीन ऑक्साइड गैस आजकल सबसे अधिक प्रयुक्त होनेवाली जीवाणुरोधक गैस है,जो शल्य-चिकित्सा (ऑपरेशन थियेटर) से लेकर जीवनरक्षक औषधियाँ बनाने तक में उपयोगी हैं । वैज्ञानिक प्रोपिलीन ऑक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षो का आधार मानते है । आयुर्वेद विशेषज्ञो के अनुसार अनिद्रा का रोगी शाम को दोनों नथुनो में गाय के घी की दो – दो बूंद डाले और रात को नाभि और पैर के तलुओ में गौघृत लगाकर लेट जाय तो उसे प्रगाढ़ निद्रा आ जायेगी । 

गौघृत में मनुष्य – शरीर में पहुंचे रेडियोधर्मी विकिरणों का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम क्षमता हैं । अग्नि में गाय का घी कि आहुति देने से उसका धुआँ जहाँ तक फैलता है,वहाँ तक का सारा वातावरण प्रदूषण और आण्विक विकरणों से मुक्त हो जाता हैं । सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि एक चम्मच गौघृत को अग्नि में डालने से एक टन प्राणवायु (ऑक्सीजन) बनती हैं जो अन्य किसी भी उपाय से संभव नहीं हैं | देसी गाय के घी को रसायन कहा गया है। जो जवानी को कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता है। काली गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है।गाय के घी में स्वर्ण छार पाए जाते हैं जिसमे अदभुत औषधिय गुण होते है, जो की गाय के घी के इलावा अन्य घी में नहीं मिलते । गाय के घी से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है। गाय के घी में वैक्सीन एसिड, ब्यूट्रिक एसिड, बीटा-कैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूट्रींस मौजूद होते हैं। जिस के सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। गाय के घी से उत्पन्न शरीर के माइक्रोन्यूट्रींस में कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती है।यदि आप गाय के 10 ग्राम घी से हवन अनुष्ठान (यज्ञ,) करते हैं तो इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में लगभग 1 टन ताजा ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने कि तथा , धार्मिक समारोह में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित है। इससे वातावरण में फैले परमाणु विकिरणों को हटाने की अदभुत क्षमता होती है। 

गाय के घी के अन्य महत्वपूर्ण उपयोग :– 

1. गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है। 

2. गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है। 

3. गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है। 

4. 20-25 ग्राम घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है। 

5. गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है। 

6. नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तारो ताजा हो जाता है। 

7. गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बहार निकल कर चेतना वापस लोट आती है। 

8. गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है। 

9. गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है। 

10. हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ढीक होता है। 

11. हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी। 

12. गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है। 

13. गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है 

14. गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है। 

15. अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें। 

16. हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा। 

17. गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।

18. जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है। 

19. देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है। 

20. संभोग के बाद कमजोरी आने पर एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच देसी गाय का घी मिलाकर पी लें। इससे थकान बिल्कुल कम हो जाएगी। 

21. फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।गाय के घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है। 

22. सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा। 

23. दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ढीक होता है। सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा। 

24. यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है। 

25. एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। 

26. गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक मलहम कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है। 

27. गाय का घी एक अच्छा(LDL)कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है। अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार,नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है। 

28. घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है।

Wednesday 20 November 2013

Benefits of Spirulina


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उत्तर दिशा मेँ सिर रखकर क्योँ नहीँ सोना चाहिए? और इसकी वैज्ञानिकता क्या?


(1) हमारे पूर्वजों ने नित्य की क्रियाओं के लिए समय, दिशा और आसन आदि का बड़ी सावधानी पूर्वक वर्णन किया है। उसी के अनुसार मनुष्य को कभी भी उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर नहीं सोना चाहिए। इसके कारण है कि पृथ्वी का उत्तरी धुव्र चुम्बकत्व का प्रभाव रखता है जबकि दक्षिण ध्रुव पर यह प्रभाव नहीं पाया जाता। शोध से पता चला है कि साधारण चुंबक शरीर से बांधने पर वह हमारे शरीर के ऊत्तकों पर विपरीत प्रभाव डालता है । इसी सिद्धांत पर यह निष्कर्ष भी निकाला गया कि अगर साधारण चुंबक हमारे शरीर पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है तो उत्तरी पोल पर प्राकृतिक चुम्बक भी हमारे मन, मस्तिष्क व संपूर्ण शरीर पर विपरीत असर डालता है। यही वजह है कि उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर सोना निषेध माना गया है।

(2) सर किस दिशा में करके सोना चाहिए यह भी एक मुख कारण है…. उत्तरी ध्रुव की तरफ .. +घनात्मक–. सर करके न सोये वैसे तो जिधर चाहे मनुष्य सिर करके सो जाता है, परंतु सिर्फ इतनी सी बात याद रखा जाए कि उत्तर की ओर सिर करके ना सोया जाये। इससे स्वप्न कम आते हैं, निद्रा अच्छी आती है। कारण- पृथ्वी के दो ध्रुवों उत्तर, दक्षिण के कारण बिजली की जो तरंगे होती है यानि, उत्तरी ध्रुव में ( + ) बिजली अधिक होती है। दक्षिणी ध्रुव में ऋणात्मक (-) अधिक होती है। इसी प्रकार मनुष्य के सिर में विद्युत का धनात्मक केंद्र होता है । पैरों की ओर ऋणात्मक। यदि बिजली एक ही प्रकार की दोनों ओर से लाई जाए तो मिलती नहीं बल्कि हटना चाहती है। यानि ( +
+= -) यदि घनत्व परस्पर विरुद्ध हो तो दौडकर मिलना चाहती है जैसे यदि सिर दक्षिण की ओर हो तो सिर का धनात्मक ( + ) और यदि पैर उत्तर ध्रुवतो, ऋणात्मक (-) बिजली एक दूसरे के सामने आ जाती है। और दोनों आपस में मिलना चाहती है। परंतु यदि पांव दक्षिण की ओर हो तो सिर का धनात्मक तथा उत्तरी ध्रुव की धनात्मक बिजली आमने-सामने हो जाती है और एक दूसरे को हटाती है जिससे मस्तिष्क में आंदोलन होता रहता है।एक दूसरे के साथ खींचा तानी चलती रहती हैपूर्व औरपश्चिम में चारपाई का मुख होने से कोई विषेश फर्क नहीं होता, बल्कि सूर्य की प्राणशक्ति मानव शरीर पर अच्छा प्रभावडालतीहै पुराने लोग इस नियम को भली प्रकार समझते थे और दक्षिण की ओर पांव करके किसी को सोने नहीं देते थे। दक्षिण की ओर पांव केवल मृत व्यक्ति के ही किये जाते हैं मरते समय उत्तर की ओर सिर करके उतारने की रीति इसी नियम पर है, भूमि बिजली को शीघ्र खींच लेती है और प्राण सुगमता से निकल जाते है। यहीँ है अपनी संस्कृति....

वन्दे मातरम्!


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