मांसाहार से हानियाँ
वैश्विक ऊष्मण (Global Warming) को कम करने के लिए 1997 में जापान के क्योटो शहर में दुनिया के 156 देशों के द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई जिसे क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) कहते हैं। इसका उद्देश्य वैश्विक ऊष्मण के कारणों का पता लगाना था। इसमें वैज्ञानिकों का एक बड़ा दल बना जिसके अध्यक्ष थे - डॉ॰ आर॰ के॰ पचौरी। इस दल ने 4 वर्षों के अध्ययन के बाद बताया की सारी दुनिया में गर्मी बढ्ने का मुख्य कारण है लोगों द्वारा मांसाहारी भोजन का उपयोग एवं उपभोग।
* दुनिया भर में मांस उत्पादन: दुनिया में लगभग 200 देश हैं और सभी देशों को मिलाकर मांस का कुल उत्पादन 26 करोड़ 50 लाख मीट्रिक टन (एक मीट्रिक टन में लगभग 1000 किग्रा॰ होते हैं)। मांस कंपनियों का कहना है की 2050 तक इस उत्पादन को 46 करोड़ मीट्रिक टन कर देंगे, माने आज के उत्पादन का लगभग दो गुना। इसके मांस कंपनियां पूरी दुनिया को मांसाहारी बनाने के काम में लग गयी हैं। इनके विज्ञापन रोज़ टीवी पर आ रहे हैं। ये मांस कंपनियों का ही विज्ञापन है "संडे हो या मंडे, रोज़ खाओ अंडे" ? और हमारे देश के कई अभिनेता, अभिनेत्री, खिलाड़ी और सम्माननीय लोग पैसे के लालच में अंडों का विज्ञापन करते हैं, जो खुद निजी ज़िंदगी में शाकाहारी हैं।
कुल मांस का उत्पादन 26 करोड़ 50 लाख मीट्रिक टन है जिसमें से मुर्गे मुर्गियों के मांस का उत्पादन है 1 करोड़ मीट्रिक टन। सूअर के मांस का उत्पादन है 10 करोड़ मीट्रिक टन। गाय के मांस का उत्पादन है 6 करोड़ मीट्रिक टन। इतने मांस के उत्पादन के लिए हर साल पूरी दुनिया में 46 अरब (4600 करोड़) जानवरों का कत्ल होता है।
* भारत की स्थिति: भारत में हर साल 58 लाख मीट्रिक टन मांस का उत्पादन होता है अर्थात् पूरी दुनिया के मांस उत्पादन का लगभग 2%। भारत में 121 करोड़ नागरिक हैं जिनमें 70% शाकाहारी और 30% मांसाहारी हैं। भारत सरकार के 2009 के आंकड़ों के अनुसार भारत में मांस के उत्पादन में गाय का मांस 14 लाख टन पैदा होता है, भैंस का मांस करीब 14 लाख टन, मटन करीब 2.5 लाख टन, सूअर का मांस करीब 6 लाख 30 हज़ार टन, मुर्गे- मुर्गियों का मांस 16 लाख टन और बाकी छोटे जानवरों का शामिल है। इतने मांस के उत्पादन के लिए भारत में करीब 10 करोड़ 50 लाख जानवरों का कत्ल किया गया। इनमें करीब 4.5 करोड़ गाय, भैंस, बैल हैं और बाकी छोटे जानवर जैसे- बकरे- बकरी, मुर्गे- मुर्गी आदि।
भारत में 3600 सरकार के रजिस्टर्ड (Registered) कत्लखाने हैं और करीब 36000 अनरजिस्टर्ड (Unregistered) कत्लखाने हैं।
* भोजन की कमी और मांसाहार: 1 एकड़ खेत के एक साल के उत्पादन से 22 लोगों का पेट भरा जा सकता है लेकिन यदि उसी एक एकड़ खेत के एक साल के उत्पादन को अगर जानवरों को खिलाया जाए और फिर उनका मांस खाया जाए तो केवल 2 लोगों का पेट साल भर के लिए भरा जा सकता है।
जानवरों को अनाज इसलिए खिलाया जाता है ताकि उनमें मांस बढ़े और जिन्हें मांस खाना है उन्हें अच्छा मांस मिल सके। विकासशील देशों में जानवरों को कुल कृषि से उत्पन्न अन्न का लगभग 40% हिस्सा खिला दिया जाता है। भारत जैसे 186 विकासशील देश हैं जो कुल कृषि की उपज का 40% हिस्सा जानवरों को खिला देते हैं। विकसित देशों में जानवरों को कुल कृषि से उत्पन्न अन्न का लगभग 70% हिस्सा खिला दिया जाता है। अमेरिका जैसे दुनिया में 17 विकसित देश हैं। अगर 40% और 70% का औसत निकाला जाए तो 55% निकलता है। अर्थात् दुनिया में औसतन आधा अनाज जानवरों को खिलाकर, उनके मांस को कुछ लोग खाते हैं। इससे अच्छा अगर वो अनाज सीधे ही हम खा जाएँ और जानवरों वाला अनाज मनुष्यों को खाने को मिल जाए तो सारी दुनिया में कहीं भी (एशिया, अफ्रीका में) भूखमरी नहीं होगी। यूएन के अनुसार हर दिन दुनिया में 40,000 लोग भूख से मर जाते हैं। सारी दुनिया में 200 करोड़ लोग भुखमरी की कगार पर हैं अर्थात् दुनिया की करीब 1/3 जनसंख्या भुखमरी की कगार पर है। यूएन की संस्था एफ़एओ (FAO) का कहना है की अगर सारी दुनिया में मांस खाने वाले लोग अपने मांस के उपभोग में सिर्फ 10% की कटौती कर दें या 10% लोग शाकाहारी हो जाएँ तो पूरी दुनिया में एक भी व्यक्ति भूख से नहीं मरेगा।
अमेरिका में हर आदमी एक साल में 165 किलो, चीन में 95 किलो, यूरोप और कनाडा में 130 किलो और भारत में 3.5 किलो मांस प्रतिवर्ष खाता है।
* अब आप सोचेंगे जानवरों के लिए भोजन कहाँ से आयेगा ??
प्रकृति ने बहुत सुंदर व्यवस्था कर राखी है जहां से हमारे लिए भोजन आता है, वहीं से जानवरों के लिए भी पैदा होता है। गेहूं के पौधे का ऊपर वाला लगभग एक फुट का हिस्सा ही हमारे काम आता है और बचा हुआ नीचे का 6-7 फुट जानवरों के काम आता है। इसी तरह मक्का और बाजरा में भी ऊपर का बाल वाला एक फुट हिस्सा हमारे काम आता है और बाकी का जानवरों के काम आता है। मनुष्य के लिए कुल जितना उत्पादन चाहिए उससे 6-7 गुना ज्यादा उत्पादन चारे का हो जाता है।
* मांस उद्योग के कर्ण जंगलों की कटाई: वैज्ञानिकों का कहना है की जंगलों की कटाई का सबसे बड़ा कारण है- मांस उद्योग का बढ़ते जाना। मांस उद्योग में मांस की पैकिंग और उस पैकिंग को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल है- लकड़ी। जिस कच्चे माल का डिब्बे बनाने में इस्तेमाल होता है। वैज्ञानिकों का कहना है की जंगलों की समाप्ति को अगर रोकना है तो मांस उद्योग को बंद कर दिया जाए।
* मांस उद्योग में पानी की बर्बादी: एक किलो मांस पैदा करने में न्यूनतम 70,000 लीटर पानी लगता है तो 285000000 मीट्रिक टन मांस पैदा करने के लिए 19950000000000000 लीटर पानी बर्बाद होता है।
अर्थात् हम छ: महीने नहाने में जो पानी खर्च करते हैं, उतना ही पानी एक किलो मांस पैदा करने में लग जाता है। अच्छे से अच्छा पानी पीने वाला व्यक्ति अगर एक दिन में 3 लीटर पानी पिये तो महीने में 90 लीटर और साल में 900-1000 लीटर पानी पिएगा। इस तरह 70 साल में वो व्यक्ति 70000 लीटर पानी पिएगा, उतना पानी 1 किलो मांस के उत्पादन में लगता है।
भारत में 20 करोड़ परिवार हैं। मांस पैदा करने वाले उद्योग के लिए एक साल में जितना पानी खर्च होता है उतने ही खर्च में 20 करोड़ परिवारों का सारी ज़िंदगी का पानी का खर्च चल सकता है। एक तरफ भारत ए 14 करोड़ परिवारों को पीने का शुद्ध पानी न मिले और दूसरी तरफ मांस उत्पादन करने वाली कंपनियां लाखों लीटर पानी बर्बाद करें। ये तो बहुत बड़ा अन्याय है ???
* मांस उद्योग के कारण प्राकृतिक आपदाएँ: कत्लखानों में जानवरों को तड़पा तड़पा कर मारा जाता है। बड़े जानवरों को भूखा रखकर उनके शरीर को कमजोर किया जाता है, फिर उनके ऊपर गरम पानी (70-100 डिग्री सेंटीग्रेट) की बौछार डाली जाती है, जिससे उनका शरीर फूलना शुरू हो जाता है। जब उनका शरीर पूरी तरह फूल जाता है तो जीवित अवस्था में ही उनकी खाल को उतारा जाता है। निकालने वाले खून को इकट्ठा किया जाता है और धीरे-2 जानवर मर जाते हैं। इस प्रक्रिया में जानवर बहुत तेज़ चीखते- चिल्लाते हैं। जानवरों की चीखें पूरे वातावरण को तरंगित कर देती हैं और वातावरण में घूमती रहती हैं। इसका वातावरण और मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह नकारात्मक प्रभाव जब बढ्ने लगता है तो लोगों में हिंसा की प्रवत्ति बढ्ने लगती है और इस हिंसा और नाकारात्मकता के कारण दुनिया में अत्याचार और पाप बढ़ रहा है।
"दिल्ली विश्वविद्यालय के 3 प्रोफेसर है जिन्होने 20 साल इस पर रिसर्च और अध्ययन किया है ये नाम हैं डॉ॰ मदन मोहन बजाज, डॉ॰ मोहम्मद सैय्यद मोहम्मद इब्राहिम और डॉ। विजय राज सिंह उनकी भौतिकी (Physics) की रिसर्च कहती है की जितना जानवरों को कत्ल किया जाएगा, जानवरों पर जितनी हिंसा की जाएगी, उतना ही अधिक दुनिया में भूकंप आएंगे। उन्होने दुनिया और भारत में जहां जहां कत्लखाने हैं वहाँ रहकर देखा। जानवरों के निकालने वाली Shock Waves को एब्सॉर्ब (Absorb) किया और उनको नापा, तौला और उनका अध्ययन किया और पाया की दुनिया में जो प्राकृतिक आपदाएँ हो रही हैं उनका बहुत बड़ा कारण हैं- कत्लखाने और उनसे निकालने वाली जानवरों की चीख पुकार।
* क्या आप जानते हैं ??
१. कैलिफोर्निया में दुनिया का सबसे बड़ा कत्लखाना है जहां दिन में 36,000 गायों को काटा जाता है।
२. महाराष्ट्र के देवनार में भारत का सबसे बड़ा कत्लखाना है जहां प्रतिदिन 14,000 गायों को काटा जाता है।
वैश्विक ऊष्मण (Global Warming) को कम करने के लिए 1997 में जापान के क्योटो शहर में दुनिया के 156 देशों के द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई जिसे क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) कहते हैं। इसका उद्देश्य वैश्विक ऊष्मण के कारणों का पता लगाना था। इसमें वैज्ञानिकों का एक बड़ा दल बना जिसके अध्यक्ष थे - डॉ॰ आर॰ के॰ पचौरी। इस दल ने 4 वर्षों के अध्ययन के बाद बताया की सारी दुनिया में गर्मी बढ्ने का मुख्य कारण है लोगों द्वारा मांसाहारी भोजन का उपयोग एवं उपभोग।
* दुनिया भर में मांस उत्पादन: दुनिया में लगभग 200 देश हैं और सभी देशों को मिलाकर मांस का कुल उत्पादन 26 करोड़ 50 लाख मीट्रिक टन (एक मीट्रिक टन में लगभग 1000 किग्रा॰ होते हैं)। मांस कंपनियों का कहना है की 2050 तक इस उत्पादन को 46 करोड़ मीट्रिक टन कर देंगे, माने आज के उत्पादन का लगभग दो गुना। इसके मांस कंपनियां पूरी दुनिया को मांसाहारी बनाने के काम में लग गयी हैं। इनके विज्ञापन रोज़ टीवी पर आ रहे हैं। ये मांस कंपनियों का ही विज्ञापन है "संडे हो या मंडे, रोज़ खाओ अंडे" ? और हमारे देश के कई अभिनेता, अभिनेत्री, खिलाड़ी और सम्माननीय लोग पैसे के लालच में अंडों का विज्ञापन करते हैं, जो खुद निजी ज़िंदगी में शाकाहारी हैं।
कुल मांस का उत्पादन 26 करोड़ 50 लाख मीट्रिक टन है जिसमें से मुर्गे मुर्गियों के मांस का उत्पादन है 1 करोड़ मीट्रिक टन। सूअर के मांस का उत्पादन है 10 करोड़ मीट्रिक टन। गाय के मांस का उत्पादन है 6 करोड़ मीट्रिक टन। इतने मांस के उत्पादन के लिए हर साल पूरी दुनिया में 46 अरब (4600 करोड़) जानवरों का कत्ल होता है।
* भारत की स्थिति: भारत में हर साल 58 लाख मीट्रिक टन मांस का उत्पादन होता है अर्थात् पूरी दुनिया के मांस उत्पादन का लगभग 2%। भारत में 121 करोड़ नागरिक हैं जिनमें 70% शाकाहारी और 30% मांसाहारी हैं। भारत सरकार के 2009 के आंकड़ों के अनुसार भारत में मांस के उत्पादन में गाय का मांस 14 लाख टन पैदा होता है, भैंस का मांस करीब 14 लाख टन, मटन करीब 2.5 लाख टन, सूअर का मांस करीब 6 लाख 30 हज़ार टन, मुर्गे- मुर्गियों का मांस 16 लाख टन और बाकी छोटे जानवरों का शामिल है। इतने मांस के उत्पादन के लिए भारत में करीब 10 करोड़ 50 लाख जानवरों का कत्ल किया गया। इनमें करीब 4.5 करोड़ गाय, भैंस, बैल हैं और बाकी छोटे जानवर जैसे- बकरे- बकरी, मुर्गे- मुर्गी आदि।
भारत में 3600 सरकार के रजिस्टर्ड (Registered) कत्लखाने हैं और करीब 36000 अनरजिस्टर्ड (Unregistered) कत्लखाने हैं।
* भोजन की कमी और मांसाहार: 1 एकड़ खेत के एक साल के उत्पादन से 22 लोगों का पेट भरा जा सकता है लेकिन यदि उसी एक एकड़ खेत के एक साल के उत्पादन को अगर जानवरों को खिलाया जाए और फिर उनका मांस खाया जाए तो केवल 2 लोगों का पेट साल भर के लिए भरा जा सकता है।
जानवरों को अनाज इसलिए खिलाया जाता है ताकि उनमें मांस बढ़े और जिन्हें मांस खाना है उन्हें अच्छा मांस मिल सके। विकासशील देशों में जानवरों को कुल कृषि से उत्पन्न अन्न का लगभग 40% हिस्सा खिला दिया जाता है। भारत जैसे 186 विकासशील देश हैं जो कुल कृषि की उपज का 40% हिस्सा जानवरों को खिला देते हैं। विकसित देशों में जानवरों को कुल कृषि से उत्पन्न अन्न का लगभग 70% हिस्सा खिला दिया जाता है। अमेरिका जैसे दुनिया में 17 विकसित देश हैं। अगर 40% और 70% का औसत निकाला जाए तो 55% निकलता है। अर्थात् दुनिया में औसतन आधा अनाज जानवरों को खिलाकर, उनके मांस को कुछ लोग खाते हैं। इससे अच्छा अगर वो अनाज सीधे ही हम खा जाएँ और जानवरों वाला अनाज मनुष्यों को खाने को मिल जाए तो सारी दुनिया में कहीं भी (एशिया, अफ्रीका में) भूखमरी नहीं होगी। यूएन के अनुसार हर दिन दुनिया में 40,000 लोग भूख से मर जाते हैं। सारी दुनिया में 200 करोड़ लोग भुखमरी की कगार पर हैं अर्थात् दुनिया की करीब 1/3 जनसंख्या भुखमरी की कगार पर है। यूएन की संस्था एफ़एओ (FAO) का कहना है की अगर सारी दुनिया में मांस खाने वाले लोग अपने मांस के उपभोग में सिर्फ 10% की कटौती कर दें या 10% लोग शाकाहारी हो जाएँ तो पूरी दुनिया में एक भी व्यक्ति भूख से नहीं मरेगा।
अमेरिका में हर आदमी एक साल में 165 किलो, चीन में 95 किलो, यूरोप और कनाडा में 130 किलो और भारत में 3.5 किलो मांस प्रतिवर्ष खाता है।
* अब आप सोचेंगे जानवरों के लिए भोजन कहाँ से आयेगा ??
प्रकृति ने बहुत सुंदर व्यवस्था कर राखी है जहां से हमारे लिए भोजन आता है, वहीं से जानवरों के लिए भी पैदा होता है। गेहूं के पौधे का ऊपर वाला लगभग एक फुट का हिस्सा ही हमारे काम आता है और बचा हुआ नीचे का 6-7 फुट जानवरों के काम आता है। इसी तरह मक्का और बाजरा में भी ऊपर का बाल वाला एक फुट हिस्सा हमारे काम आता है और बाकी का जानवरों के काम आता है। मनुष्य के लिए कुल जितना उत्पादन चाहिए उससे 6-7 गुना ज्यादा उत्पादन चारे का हो जाता है।
* मांस उद्योग के कर्ण जंगलों की कटाई: वैज्ञानिकों का कहना है की जंगलों की कटाई का सबसे बड़ा कारण है- मांस उद्योग का बढ़ते जाना। मांस उद्योग में मांस की पैकिंग और उस पैकिंग को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल है- लकड़ी। जिस कच्चे माल का डिब्बे बनाने में इस्तेमाल होता है। वैज्ञानिकों का कहना है की जंगलों की समाप्ति को अगर रोकना है तो मांस उद्योग को बंद कर दिया जाए।
* मांस उद्योग में पानी की बर्बादी: एक किलो मांस पैदा करने में न्यूनतम 70,000 लीटर पानी लगता है तो 285000000 मीट्रिक टन मांस पैदा करने के लिए 19950000000000000 लीटर पानी बर्बाद होता है।
अर्थात् हम छ: महीने नहाने में जो पानी खर्च करते हैं, उतना ही पानी एक किलो मांस पैदा करने में लग जाता है। अच्छे से अच्छा पानी पीने वाला व्यक्ति अगर एक दिन में 3 लीटर पानी पिये तो महीने में 90 लीटर और साल में 900-1000 लीटर पानी पिएगा। इस तरह 70 साल में वो व्यक्ति 70000 लीटर पानी पिएगा, उतना पानी 1 किलो मांस के उत्पादन में लगता है।
भारत में 20 करोड़ परिवार हैं। मांस पैदा करने वाले उद्योग के लिए एक साल में जितना पानी खर्च होता है उतने ही खर्च में 20 करोड़ परिवारों का सारी ज़िंदगी का पानी का खर्च चल सकता है। एक तरफ भारत ए 14 करोड़ परिवारों को पीने का शुद्ध पानी न मिले और दूसरी तरफ मांस उत्पादन करने वाली कंपनियां लाखों लीटर पानी बर्बाद करें। ये तो बहुत बड़ा अन्याय है ???
* मांस उद्योग के कारण प्राकृतिक आपदाएँ: कत्लखानों में जानवरों को तड़पा तड़पा कर मारा जाता है। बड़े जानवरों को भूखा रखकर उनके शरीर को कमजोर किया जाता है, फिर उनके ऊपर गरम पानी (70-100 डिग्री सेंटीग्रेट) की बौछार डाली जाती है, जिससे उनका शरीर फूलना शुरू हो जाता है। जब उनका शरीर पूरी तरह फूल जाता है तो जीवित अवस्था में ही उनकी खाल को उतारा जाता है। निकालने वाले खून को इकट्ठा किया जाता है और धीरे-2 जानवर मर जाते हैं। इस प्रक्रिया में जानवर बहुत तेज़ चीखते- चिल्लाते हैं। जानवरों की चीखें पूरे वातावरण को तरंगित कर देती हैं और वातावरण में घूमती रहती हैं। इसका वातावरण और मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह नकारात्मक प्रभाव जब बढ्ने लगता है तो लोगों में हिंसा की प्रवत्ति बढ्ने लगती है और इस हिंसा और नाकारात्मकता के कारण दुनिया में अत्याचार और पाप बढ़ रहा है।
"दिल्ली विश्वविद्यालय के 3 प्रोफेसर है जिन्होने 20 साल इस पर रिसर्च और अध्ययन किया है ये नाम हैं डॉ॰ मदन मोहन बजाज, डॉ॰ मोहम्मद सैय्यद मोहम्मद इब्राहिम और डॉ। विजय राज सिंह उनकी भौतिकी (Physics) की रिसर्च कहती है की जितना जानवरों को कत्ल किया जाएगा, जानवरों पर जितनी हिंसा की जाएगी, उतना ही अधिक दुनिया में भूकंप आएंगे। उन्होने दुनिया और भारत में जहां जहां कत्लखाने हैं वहाँ रहकर देखा। जानवरों के निकालने वाली Shock Waves को एब्सॉर्ब (Absorb) किया और उनको नापा, तौला और उनका अध्ययन किया और पाया की दुनिया में जो प्राकृतिक आपदाएँ हो रही हैं उनका बहुत बड़ा कारण हैं- कत्लखाने और उनसे निकालने वाली जानवरों की चीख पुकार।
* क्या आप जानते हैं ??
१. कैलिफोर्निया में दुनिया का सबसे बड़ा कत्लखाना है जहां दिन में 36,000 गायों को काटा जाता है।
२. महाराष्ट्र के देवनार में भारत का सबसे बड़ा कत्लखाना है जहां प्रतिदिन 14,000 गायों को काटा जाता है।
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