(1) हमारे पूर्वजों ने नित्य की क्रियाओं के लिए समय, दिशा और आसन आदि का बड़ी सावधानी पूर्वक वर्णन किया है। उसी के अनुसार मनुष्य को कभी भी उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर नहीं सोना चाहिए। इसके कारण है कि पृथ्वी का उत्तरी धुव्र चुम्बकत्व का प्रभाव रखता है जबकि दक्षिण ध्रुव पर यह प्रभाव नहीं पाया जाता। शोध से पता चला है कि साधारण चुंबक शरीर से बांधने पर वह हमारे शरीर के ऊत्तकों पर विपरीत प्रभाव डालता है । इसी सिद्धांत पर यह निष्कर्ष भी निकाला गया कि अगर साधारण चुंबक हमारे शरीर पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है तो उत्तरी पोल पर प्राकृतिक चुम्बक भी हमारे मन, मस्तिष्क व संपूर्ण शरीर पर विपरीत असर डालता है। यही वजह है कि उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर सोना निषेध माना गया है।
(2) सर किस दिशा में करके सोना चाहिए यह भी एक मुख कारण है…. उत्तरी ध्रुव की तरफ .. +घनात्मक–. सर करके न सोये वैसे तो जिधर चाहे मनुष्य सिर करके सो जाता है, परंतु सिर्फ इतनी सी बात याद रखा जाए कि उत्तर की ओर सिर करके ना सोया जाये। इससे स्वप्न कम आते हैं, निद्रा अच्छी आती है। कारण- पृथ्वी के दो ध्रुवों उत्तर, दक्षिण के कारण बिजली की जो तरंगे होती है यानि, उत्तरी ध्रुव में ( + ) बिजली अधिक होती है। दक्षिणी ध्रुव में ऋणात्मक (-) अधिक होती है। इसी प्रकार मनुष्य के सिर में विद्युत का धनात्मक केंद्र होता है । पैरों की ओर ऋणात्मक। यदि बिजली एक ही प्रकार की दोनों ओर से लाई जाए तो मिलती नहीं बल्कि हटना चाहती है। यानि ( +
+= -) यदि घनत्व परस्पर विरुद्ध हो तो दौडकर मिलना चाहती है जैसे यदि सिर दक्षिण की ओर हो तो सिर का धनात्मक ( + ) और यदि पैर उत्तर ध्रुवतो, ऋणात्मक (-) बिजली एक दूसरे के सामने आ जाती है। और दोनों आपस में मिलना चाहती है। परंतु यदि पांव दक्षिण की ओर हो तो सिर का धनात्मक तथा उत्तरी ध्रुव की धनात्मक बिजली आमने-सामने हो जाती है और एक दूसरे को हटाती है जिससे मस्तिष्क में आंदोलन होता रहता है।एक दूसरे के साथ खींचा तानी चलती रहती हैपूर्व औरपश्चिम में चारपाई का मुख होने से कोई विषेश फर्क नहीं होता, बल्कि सूर्य की प्राणशक्ति मानव शरीर पर अच्छा प्रभावडालतीहै पुराने लोग इस नियम को भली प्रकार समझते थे और दक्षिण की ओर पांव करके किसी को सोने नहीं देते थे। दक्षिण की ओर पांव केवल मृत व्यक्ति के ही किये जाते हैं मरते समय उत्तर की ओर सिर करके उतारने की रीति इसी नियम पर है, भूमि बिजली को शीघ्र खींच लेती है और प्राण सुगमता से निकल जाते है। यहीँ है अपनी संस्कृति....
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